चन्द्…

चन्द्र-चकोर, चातक-स्वाति, लौ-पतंग, दीया-बाती।
मुए जनम लै फिरि-फिरि काटै, बिरहा कै दिन राती।

चन्द्र सतावै, चातक तरसै, जरै पतंग, दिया लरजै।
तोरै नाहिं रीति केहि कारन, प्रीत मेह हिय गरजै।

Aside

2 Comments (+add yours?)

  1. Sudha Jaiswal
    May 06, 2012 @ 20:52:43

    Very nice!

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  2. चातक
    May 07, 2012 @ 23:26:36

    Thanks a lot!

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