वो जुबाँ से गिराते रहे बिजलियाँ, हम घटाओं को दिल में समेटे रहे,
वो गरजते रहे दामिनी की तरह, हम बरसते रहे बादलों की तरह !
मेरी कवितायेँ
28 Mar 2012 Leave a comment
वो जुबाँ से गिराते रहे बिजलियाँ, हम घटाओं को दिल में समेटे रहे,
वो गरजते रहे दामिनी की तरह, हम बरसते रहे बादलों की तरह !